जालोर दुर्ग (जालोर)
प्राचीन नाम र्स्वगगिरी (सोनलगढ़) दुग है, यह 1250 फीट की उॅचाई पर स्थित है, इसका क्षेत्रफल 800 गज लम्बा एवं 400 गज चौड़ा है, सिढीयों के द्वारा इस पर चढ़ा जानें का रास्ता है जो चारपोल से होकर गुजरता है। किलें मे राजा मानसिंह के महल, झरोखें, दो जैन मन्दिर, चामुण्डामाताजी का मन्दिर, शिव मन्दिर, क्षेत्रपाल मन्दिर व सन्त मल्लिकशाह की दरगाह व दहियों कीपोल प्रमुख है। पेयजल कें लियें दो पानी कें झालरें व दुर्ग के शिखर पर निर्मित वीरमदेव की चौकीआदि दर्शनीय स्थल है। 1288 ई. में इस दुर्ग पर अल्लाउदीन खिलजी नें आक्रमण किया कालान्तरमें पोपाबाई, पालनपुर कें बिहारी पठानों एवं गुजरात कें नवाबों का आधिपत्य रहा था।
सुन्देलाव तालाब
शहर का एतिहासिक सुन्देलाव तालाब एक प्राचीन तालाब है | जिसके तट पर हनुमानजी एवं माजिसा माताजी का प्राचीन मंदिर है एवं तालाब के उत्तर दिशा में जैन खेतलाजी मंदिर स्थित है |इस तालाब में बोटिंग कि सुविधा भी मोजूद है | यह तालाब शहर का एक मुख्य पर्यटन स्थल है |
तोपखाना (जालोर)
शहर के मध्य में स्थित 8वीं सदी का भव्य संस्कृत पाठशाला एवं देवालय मौजूद है, इसें संस्कृतकण्ठाभरण पाठशाला भी कहतें है, कालान्तर में जोधपुर राज्य की तोपें यहॉ रखी जाती थी, इसलिएइसका नाम कालान्तर में तोपखना जाना जाता है।
सिरे मन्दिर (जालोर)
जाबालि ऋषि की तपोभूमि व पांडवों ने अज्ञात वास का कुछ समय यहॉ बिताया, राजा भृतर्हार केवैराग पथ के प्रमुख-सुआनाथ एवं उनकें शिष्यों की आराध्य स्थली रहा, 646 मीटर की उॅचाईकवशाचल पर्वत की गोद में मन्दिर स्थित है, नाथ सम्प्रदाय के जलन्धरनाथजी ने यहॉ स्थितभॅवर गुफा में कठोर तपस्या की थी, तथा तात्कालिक परमार राजा राव रतन को वड़ वृक्ष के नीचेतपोबल सें चमत्कार दिखाया व राजा रतनसिंह नें यहॉ शिव मन्दिर बनवाया जिसका जिर्णोदारराजा मानसिंह राठौड़ द्वारा करवाया गया।
सुन्धा माता मंदिर (भीनमाल)
अरावली पर्वतमाला के सुंधा पर्वत पर 1220 मीटर की उॅचाई पर स्थित है, यहां पर्यटकों के लिएरोप-वे लगा हुआ है, यहां मॉ चामुण्डा देवी के सिर की पूजा होती है, यह भक्तो के लिए बहुत हीपवित्र जगह मानी जाती है, लोगो की यह मान्यता है कि चामुण्डा माता का सिर सुंधा पर्वत पर,घड़ कोटडा और पैर सुन्देला पार(जालोर) पर पुजे जाते है। सुंधामाता मंदिर जिला मुख्यालय से 105 कि.मी. की दुरी पर और भीनमाल से 35 कि.मी. की दुरीपर स्थित है, मालवाड़ा से जसवन्तपुरा रोड़ पर दांतलावास गांव के करीब स्थित है, गुजरात औरराजस्थान से रोजाना कई श्रदाल़ एवं पर्यटक यहॉ आते है।
लोहियाणागढ़ (जसवन्तपुरा)
जसवन्तपुरा की पहाड़ीयों पर स्थित यह दुर्ग जिसमें महाराणा प्रताप नें हल्दी घाटी युद्ध के पश्चात् कुछ काल तक प्रवास किया था, राठौड़ों के काल में लोहियाणा के ठाकुर राणा सालभसिंह देवल नें बागी होकर मारवाड़ राज्य में लूटपात आरम्भ कर दी, जिससें नाराज होकर जसवंत सिंह द्धितीय नें लोहियाणा गांव उजाड़ दिया व पहाड़ की तलहटी में जसवन्तपुरा गांव बसाया।
वाराहश्याम मन्दिर (भीनमाल)
भीनमाल शहर के मध्य मे स्थित प्राचीन वाराहश्याम मंदिर है जिसमें नर-वाराह की मूर्ति जैसलमेरके पीलें पत्थर से निर्मित आदमकद 7 फीट उॅची मूर्ति है, यह माना जाता है कि यह मंदिर जालोरजिले का सबसे प्राचीन मंदिर है।
सेवाड़ा का शिव मंदिर (रानीवाड़ा)
रानीवाड़ा सांचौर के मार्ग पर सेवाड़ा ग्राम में स्थित 10 सदी का पातालेश्वर का शिव मंदिर जोंभग्नावेश अवस्था में है। अलाउदीन खिलजी नें जालोर नरेश कान्हड़देव को सबक सिखानें कीदृष्टि से वापसी के दौरान नष्ट भष्ट कर दिया।
आशापुरी माता मंदिर (मोदरान)
इस मंदिर में स्थापित मूर्ति लगभग एक हजार वर्ष प्रचीन है, इसें उत्तरी गुजरात कें खेरालू नामकग्राम कें एक भक्त सें प्राप्त कर यहां स्थापित की गई।
भाद्राजून (सुभद्रा-अर्जुन)
जिला मुख्यालय से 54 कि.मी. जोधपुर मार्ग पर स्थित भाद्राजून कस्बा महाभारत कें महानायकवीर अर्जुन तथा सुभद्रा की विवाह स्थली रहा। यहॉ का प्राचीन दुर्ग महाभारत काल में बना हुआ जोंआज भी काफी ठीक हालत मे है।
भालू अभ्यारण (जसवन्तपुरा)
जसवन्तपुरा के सुंधा पर्वत में 1200 हैक्टर में भालू के संरक्षण कें लियें आरक्षित वन क्षेत्र जिसमें लगभग 40 भालू आबाद विचरण करते हुए देखे जा सकते है।